گلهای تازه ۴۶
گوینده: آذر پژوهش |
|
|
|
|
روز هجران و شب فرقت یارآخر شد |
زدم این فال و گذشت اختر و کار آخر شد |
|
|
آن پریشانی شبهای دراز و غم دل |
همه در سایۀ گیسوی نگار آخر شد |
|
|
صبح امّید که بُد معتکف پردۀ غیب |
گو برون آی که کار شب تار آخر شد |
|
|
|
|
غزل (حافظ) |
گوینده: آذر پژوهش |
|
|
|
|
آن همه ناز و تنعّم که خزان میفرمود |
عاقبت در قدم باد بهار آخر شد |
|
|
شکر ایزد که به اقبال کُله گوشۀ گل |
نخوت بادی دی و شوکت خار آخر شد |
|
|
|
|
غزل (حافظ) |
گوینده: آذر پژوهش |
|
|
|
|
ساقیا لطف نمودی قدحت پُر می باد |
که به تدبیر تو تشویشِ خمار آخر شد |
|
|
باورم نیست ز بد عهدی ایّام هنوز |
قصّۀ غصّه که در دولتِ یار آخر شد |
|
|
بعد از این نور به آفاق دهیم از دلِ خویش |
که به خورشید رسیدیم و غبار آخر شد |
|
|
روز هجران و شب فرقت یار آخر شد |
زدم این فال و گذشت اختر و کار آخر شد |
|
|
|
|
حافظ (غزل) |
آواز: ایرج |
|
|
|
|
روز هجران و شب فرقت یار آخر شد |
زدم این فال و گذشت اختر و کار آخر شد |
|
|
آن پریشانی شبهای دراز و غم دل |
همه در سایۀ گیسوی نگار آخر شد |
|
|
آن همه ناز و تنعّم که خزان میفرمود |
عاقبت در قدمِ بادِ بهار آخر شد |
|
|
ساقیا لطف نمودی قدحت پُر می باد |
که به تدبیر تو تشویشِ خمار آخر شد |
|
|
|
|
غزل (حافظ) |
'گوینده: آذر پژوهش |
|
|
|
|
بعد از این نور به آفاق دهیم از دلِ خویش |
که به خورشید رسیدیم و غبار آخر شد |
|
|
در شمار ار چه نیاورد کسی حافظ را |
شکر کان محنت بیرون ز شمار آخر شد |
|
|
|
|
غزل (حافظ) |