گلهای تازه ۷
گوینده: فخری نیکزاد
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بهار آمد گل و نسرین نیاورد |
نسیمی بوی فروردین نیاورد |
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پرستو آمد و از گل خبر نیست |
چرا گل با پرستو همسفر نیست |
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هوشنگ ابتهاج (مثنوی)
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آواز: شهیدی
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بهار آمد گل و نسرین نیاورد |
نسیمی بوی فروردین نیاورد |
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پرستو آمد و از گل خبر نیست |
چرا گل با پرستو همسفر نیست |
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چه افتاد این گلستان را چه افتاد |
که آیین بهاران رفتش از یاد |
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چه درد است چه درد است این چه درد است |
که در گلزار ما این فتنه کرده است |
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چرا در هر نسیمی بوی خون است |
چرا زلف بنفشه سرنگون است |
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چرا سر بُرده نرگس در گریبان |
چرا بنشسته قُمری چون غریبان |
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چرا پروانه گُل را پَر شکسته است |
چرا هر گوشه گرَدِ غم نشسته است چرا |
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چرا خورشید فروردین فرو خفت |
بهار آمد گُلِ نوروز نشکفت |
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هوشنگ ابتهاج (مثنوی)
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گوینده: فخری نیکزاد |
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بهارا تلخ منشین خیز و پیش آی |
گره واکن ز ابرو چهره بگشای |
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بهارا خیز و زان ابر سبُکرو |
بزن آبی به روی سبزۀ نو |
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سر و رویی به سرو و یاسمن بخش |
نوایی نو به مرغان چمن بخش |
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برآر از آستین، دستِ گلافشان |
گلی بر دامن این سبزه بنشان |
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گریبان چاک شد از ناشکیبان |
برون آر گُل از چاک گریبان |
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هوشنگ ابتهاج (مثنوی)
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تصنیف: شهیدی
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بهارا تلخ منشین خیز و پیش آی |
گره واکن ز ابرو چهره بگشای |
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بهارا خیز و زان ابر سبُک رو |
بزن آبی به روی سبزۀ نو |
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سر و رویی به سرو و یاسمن بخش |
نوایی نو به مرغان چمن بخش |
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برآر از آستین دستِ گلافشان |
گُلی بر دامن این سبزه بنشان |
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هوشنگ ابتهاج (مثنوی)
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آواز: شهیدی
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بهارا بنگر این خاک بلاخیز |
که شد هر خاربُن چون دشنه خونریز |
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بهارا زنده مانی زندگی بخش |
(به فروردین ما فرخندگی بخش)2 |
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بهارا بنگر این دشتِ مشوّش |
که میبارد بر آن بارانِ آتش |
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هنوز اینجا جوانی دلنشین است |
هنوز اینجا نفسها آتشین است |
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بهارا باش کاین خونِ گلآلود |
برآرد سرخ کوه چون آتش از دود |
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بهارا شاد بنشین شاد بخرام |
بده کام گُل و بستان زگُل کام |
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اگر خود عمر باشد سر برآریم |
دل و جان در هوای هم گماریم |
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دگر بارت چون بینم شاد بینم |
سَرت سبز و دلت آباد بینم |
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(به نوروزِ دگر هنگام دیدار |
به آیینِ دگر آیین پدید آر |
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هوشنگ ابتهاج (مثنوی)
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