گلهای تازه ۵۱
گوینده: فخری نیکزاد |
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به کوی میکده هر سالِکی که ره دانست |
دری دگر زدن اندیشۀ تَبَه دانست |
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بر آستانۀ میخانه هر که یافت رهی |
ز فیضِ جام می اسرارِ خانقه دانست |
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زمانه افسرِ رندی نداد جز به کسی |
که سرفرازیِ عالم در این کُله دانست |
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هر آنکه راز دو عالم ز خطِ ساغر خواند |
رموزِ جامِ جم از نقشِ خاکِ ره دانست |
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ز جورِ کوکبِ طالع سحرگهان چشمم |
چنان گریست که ناهید دید و مَه دانست |
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وَرای طاعت دیوانگان ز ما مطلب |
که شیخِ مذهب ما عاقلی گُنه دانست |
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دلم ز نرگس ساقی امان نخواست به جان |
چرا که شیوۀ آن تُرک دل سیه دانست |
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به کوی میکده هر سالِکی که ره دانست |
دری دگر زدن اندیشۀ تَبَه دانست |
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حافظ (غزل) |
آواز: شهیدی |
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به کوی میکده هر سالِکی که ره دانست |
دری دگر زدن اندیشۀ تَبَه دانست |
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بر آستانۀ میخانه هر که یافت رهی |
ز فیض جام می اسرارِ خانقه دانست |
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زمانه افسر رندی نداد جز به کسی |
که سرفرازی عالم در این کُله دانست |
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هر آنکه راز دو عالم ز خطِ ساغر خواند |
رموزِ جامِ جم از نقشِ خاکِ ره دانست |
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ز جورِ کوکبِ طالع سحرگهان چشمم |
چنان گریست که ناهید دید و مَه دانست |
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وَرای طاعتِ دیوانگان ز ما مطلب |
که شیخ مذهبِ ما عاقلی گُنه دانست |
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دلم ز نرگس ساقی امان نخواست به جان |
چرا که شیوۀ آن تُرک دلسیه دانست |
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دلم ز نرگسِ ساقی امان نخواست به جان |
چرا که شیوۀ آن تُرک دلسیه دانست |
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حافظ (غزل) |
گوینده: فخری نیکزاد |
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جان بی جمالِ جانان میل جهان ندارد |
هر کس که این ندارد حقّا که آن ندارد |
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با هیچکس نشانی زان دلستان ندیدم |
یا من خبر ندارم یا او نشان ندارد |
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هر شبنمی درین ره صد بَحرِ آتشین است |
دردا که این مُعَمّا شرح و بیان ندارد |
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سر منزلِ فراغت نتوان ز دست دادن |
ای ساربان فروکش کاین ره کران ندارد |
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حافظ (غزل) |
تصنیف: شهیدی |
جان بیجمال جانان میل جهان ندارد |
هر کس این ندارد حقّا که آن ندارد |
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با هیچکس نشانی زان دلستان ندیدم |
یا من خبر ندارم یا او نشان ندارد |
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جان بیجمالِ جانان میل جهان ندارد |
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هر شبنمی درین ره صد بَحرِ آتشین است |
دردا که این مُعَمّا شرح و بیان ندارد |
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جان بیجمالِ جانان میل جهان ندارد |
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هر شبنمی درین ره صد بَحرِ آتشین است |
دردا که این مُعَمّا شرح و بیان ندارد |
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جان بیجمالِ جانان میل جهان ندارد |
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چنگِ خمیده قامت میخوانَدَت به عِشرت |
بشنو که پندِ پیران هیچت زیان ندارد |
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جان بیجمالِ جانان میل جهان ندارد |
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احوالِ گنجِ قارون کایّام داد بر باد |
در گوشِ گل فروخوان تا زر نهان ندارد |
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جان بیجمالِ جانان میل جهان ندارد |
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حافظ (غزل) |