گلهای رنگارنگ ۴۲۶
|
|
|
|
|
|
آذر پژوهش (گوینده) |
|
|
|
|
|
|
پرده یك سو نه كه حیرانیم ما |
عید می خواهیم و قربانیم ما |
|
||
|
دامنی بر عیب ها گسترده ایم |
با وجود آن كه عریانیم ما |
|
||
|
|
|
ظھوری ترشیزی |
||
|
كه بر گذشت كه بوی عبیر می آید |
مگر ز جانب كنعان بشیر می آید |
|
||
|
جمال كعبه چنان می دواندم به نشاط |
كه خارهای مغیلان حریر می آید |
|
||
|
|
|
سعدی (غزل) |
||
الهه (ترانه) |
|
|
|
||
|
یوسف گم گشته باز آید به كنعان غم مخور |
كلبۀ احزان شود روزی گلستان غم مخور |
|
||
|
این دل غم دیده حالش به شود دل بد مكن |
وین سر آشفته باز آید به سامان غم مخور |
|
||
|
دور گردون گر دو روزی بر مراد ما نگشت |
دائما یك سان نباشد حال دوران غم مخور |
|
||
|
ای دل ار سیل فنا بنیاد هستی بر كند |
چون تو را نوح هست كشتی بان ز طوفان غم مخور |
|
||
|
در بیابان گر به شوق كعبه خواهی زد قدم |
سرزنش ها گر كند خار مغیلان غم مخور |
|
||
|
|
|
حافظ (غزل) |
||
آذر پژوهش (گوینده) |
|
|
|
||
|
چه خوش است پیش زلفت سر شكوه باز كردن |
گله های روز هجران به شب دراز كردن |
|
||
|
سر كوی دلبر من به حریم كعبه ماند |
كه به هر طرف كنی روی بتوان نماز كردن |
|
||
|
|
|
مظھر |
||
شهیدی (آواز) |
|
|
|
||
|
اندر ره تو كعبه و خمار نماند |
یك كس ز می عشق تو هشیار نماند |
|
||
|
گر بر فكنی پرده از آن چهرۀ زیبا |
از چهرۀ خورشید و مه آثار نماند |
|
||
|
و آن را كه دمی روی نمایی ز دو عالم |
آن سوخته را جز غم تو كار نماند |
|
||
|
جانا ز می عشق تو یك قطره به ما ده |
تا در دو جهان یك دل بیدار نماند |
|
||
|
در خواب كن این سوختگان را به می عشق |
تا جز تو كسی محرم اسرار نماند |
|
||
|
از بس كه ز دریای دلم موج گوهر ریخت |
ترسم كه در این واقعه"عطار" نماند |
|
||
|
|
|
عطار (غزل) |
||
آذر پژوهش (گوینده) |
|
|
|
||
|
به كعبه رفتم و آنجا هوای كوی تو كردم |
جمال كعبه تماشا به یاد روی تو كردم |
|
||
|
نهاده خلق حرم سوی كعبه روی عبادت |
من از میان همه روی دل به سوی تو كردم |
|
||
|
|
|
جامی |
||
الهه(ترانه) |
|
|
|
||
|
یوسف گم گشته باز آید به كنعان غم مخور |
كلبۀ احزان شود روزی گلستان غم مخور |
|
||
|
این دل غم دیده حالش به شود دل بد مكن |
وین سر آشفته باز آید به سامان غم مخور |
|
||
|
دور گردون گر دو روزی بر مراد ما نگشت |
دائما یك سان نباشد حال دوران غم مخور |
|
||
|
ای دل ار سیل فنا بنیاد هستی بر كند |
چون تو را نوح هست كشتی بان ز طوفان غم مخور |
|
||
|
در بیابان گر به شوق كعبه خواهی زد قدم |
سرزنش ها گر كند خار مغیلان غم مخور |
|
||
|
|
|
حافظ (غزل) |